बिहार की सियासत में संजय यादव के बारे में आम लोग कम ही जानते हैं. कोई उन्हें तेजस्वी यादव का राजनीतिक सलाहकार कहता है तो कुछ लोग उन्हें तेजस्वी के निजी सलाहकार के तौर पर जानते हैं.
तेजस्वी यादव और संजय यादव के बीच मित्रता इतनी गाढ़ी है कि आरजेडी ने हाल ही में अपने कई पुराने और वरिष्ठ नेताओं को छोड़कर संजय यादव को राज्यसभा भेजा है. संजय यादव आमतौर पर परदे के पीछे रहकर काम करते रहे हैं. वो तेजस्वी यादव के साथ साए की तरह नज़र आते हैं.
बिहार में बीजेपी के एक बड़े नेता ने मुझसे एक बार कहा था, “जैसे महाभारत का संजय अपनी आँखों से देखकर धृतराष्ट्र को बताता था, वैसे ही आजकल तेजस्वी यादव ख़ुद नहीं बल्कि संजय यादव की नज़र से देखते हैं.”
महाभारत की कथा में राजा धृतराष्ट्र को दिखाई नहीं देता था और उन्हें कुरुक्षत्र के मैदान में हो रहे युद्ध की सारी जानकारी संजय से मिलती थी.
इसलिए बीजेपी के उस नेता का संजय यादव को लेकर टिप्पणी भले ही एक तंज़ हो, लेकिन तेजस्वी के लिए संजय यादव कितनी अहमियत रखते हैं, इसका अंदाज़ा इस बात से भी लगता है कि कुछ ही दिन पहले संजय यादव को आरजेडी ने राज्यसभा भेज दिया.
बिहार में आरजेडी के पुराने और बड़े नेताओं की जगह पर राज्यसभा के लिए संजय यादव का नाम सामने आया तो बिहार से बाहर राजनीति गलियारों में अचानक कई लोगों के मोबाइल यह जानने के लिए व्यस्त हो गए कि ये ‘संजय यादव’ कौन हैं?
रन से रणनीतिकार तक का सफर
इसी साल फ़रवरी महीने में राज्यसभा के लिए संजय यादव के नामांकन में ख़ुद पार्टी के सुप्रीमो लालू प्रसाद, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव समेत पार्टी के कई वरिष्ठ सदस्य मौजूद थे.
इसी साल फ़रवरी महीने में राज्यसभा के लिए संजय यादव के नामांकन में ख़ुद पार्टी के सुप्रीमो लालू प्रसाद, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव समेत पार्टी के कई वरिष्ठ सदस्य मौजूद थे.
राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, “जब साल 2015 में बिहार में पहली बार महागठबंधन की सरकार बनी थी तब भी संजय यादव तेजस्वी के साथ थे और साल 2020 के राज्य विधानसभा चुनावों से अब तक वो लगातार आरजेडी के प्रमुख रणनीतिकारों में हैं.”
आम लोगों के मन में ऐसे कई सवाल हो सकते हैं कि संजय यादव किस तरह तेजस्वी के क़रीब आए? कैसे हरियाणा के महेंद्रगढ़ का एक शख़्स बिहार के एक प्रमुख सियासी दल के रणनीतिकारों में शामिल हो गए?
संजय यादव तेजस्वी यादव के उन दिनों के साथी हैं, जब तेजस्वी का राजनीति से कोई सरोकार नहीं था और वो दिल्ली में क्रिकेट के मैदान में पसीने बहा रहे थे. संजय यादव हरियाणा के महेंद्रगढ़ ज़िले के नंगल सिरोही गाँव से ताल्लुक़ रखते हैं.
क्रिकेट के मैदान में ही अभ्यास के दौरान तेजस्वी यादव और संजय यादव की दोस्ती हुई. संजय यादव भी उन दिनों स्टेडियम जाया करते थे. कुछ लोग कहते हैं कि संजय यादव लालू प्रसाद यादव की एक बेटी के दूर के ससूराली रिश्तेदार भी बताए जाते हैं.
लालू परिवार को क़रीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार नलिन वर्मा कहते हैं, “लालू की बेटी के और भी बहुत से रिश्तेदार होंगे, लेकिन संजय से तेजस्वी की निजी और बहुत गहरी मित्रता है. तेजस्वी के लिए उन्होंने एमएनसी की अपनी नौकरी तक छोड़ दी और बिहार आ गए.
नलिन वर्मा के मुताबिक़ साल 2013 में चारा घोटाला मामले में लालू के जेल जाने के बाद राबड़ी देवी अकेली हो गई थीं. उसके बाद उन्होंने तेजस्वी को दिल्ली से बिहार बुला लिया, लेकिन तेजस्वी को भी बिहार में मन नहीं लग रहा था, अपने मित्रों से दूर हो गए थे, तब उन्होंने अपने साथी संजय यादव को बिहार बुला लिया.
संजय यादव ने कंप्यूटर साइंस और मैनेजमैंट की पढ़ाई की है और वो एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करते थे. बिहार आकर उन्होंने कुछ साल तक यहाँ की राजनीति को समझा, चुनावी समीकरण और आँकड़ों पर काम किया.
संजय यादव ने ज़रूरत के मुताबिक़ आरजेडी में कई तरह के तकनीकी और डिजिटल दौर के बदलाव भी किए.
माना जाता है कि आरजेडी को लालू प्रसाद यादव की पहचान से बाहर निकाल कर एक नई पहचान दिलाने की कोशिश में संजय यादव की बड़ी भूमिका है. संजय यादव और मनोज झा जैसे नेता आरजेडी की सक्रियता दिल्ली के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों तक पहुँचाने की कोशिश में लगे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं, “संजय यादव तेज़ आदमी हैं. तेजस्वी यादव के राजनीति के मैदान में आने में संजय की बड़ी भूमिका है. उन्होंने बिहार की राजनीति को बारीकी से समझा और इसका तेजस्वी को फ़ायदा भी हुआ.”
कहा जाता है कि संजय यादव की रणनीति से ही साल 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में आरजेडी को बड़ा फ़ायदा हुआ था. चुनाव प्रचार में तेजस्वी ने आरजेडी की सरकार बनने पर 10 लाख लोगों को नौकरी देने का वादा किया था.
युवाओं में नौकरी और रोज़गार की ज़रूरत को मुद्दा बनाकर उन चुनावों के बाद आरजेडी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और महज़ कुछ सीटों से सरकार बनाने से चूक गई थी.
मौक़े पर चौका मारने की रणनीति
माना जाता है कि संजय यादव ने ही आरजेडी में मौजूदा समय के हिसाब से कई बदलाव कराए हैं. उन्होंने मुस्लिम-यादव समीकरण से बाहर अन्य वर्गों और बिहार के युवाओं को जोड़ने की रणनीति बनाई है.
बिहार के सियासी गलियारों में संजय यादव का नाम पहली बार उस वक़्त सुना गया जब 2015 के राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने ‘आरक्षण की समीक्षा’ वाला बयान दिया था.
कहा जाता है कि भागवत का बयान एक मौक़ा था और संजय यादव की सलाह पर ही लालू प्रसाद ने इसके ख़िलाफ़ आक्रामक रुख़ अपनाया था और इससे भाजपा को बिहार में करारी शिकस्त मिली थी.
संजय यादव के असर से ही तेजस्वी की भाषा और उनके भाषण में बड़ा बदलाव हुआ है. साल 2017 में जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ छोड़ा था तब उन्हें तेजस्वी यादव ‘पलटू चाचा’ तक कहते थे, लेकिन अब तेजस्वी के लिए नीतीश कुमार ‘चाचाजी’ हैं.
हाल के समय में तेजस्वी यादव ने कई मौक़ों पर ऐसे बयान भी दिए हैं, जिसने आरजेडी के विपक्षी दलों को उलझन में डाल दिया.
इसी साल जनवरी महीने में नीतीश ने जब दोबारा महागठबंधन का साथ छोड़ा था, उस वक़्त तेजस्वी ने दावा किया था कि “बिहार में अभी खेला बाक़ी है”. हालाँकि बिहार विधानसभा में फ़्लोर टेस्ट के दौरान ख़ुद तेजस्वी यादव की पार्टी के कई विधायक सत्ता दल से जाकर मिल गए.
लेकिन माना जाता है कि तेजस्वी के ‘खेला बाक़ी है’ वाले बयान की वजह से ही बीजेपी अपने विधायकों को प्रशिक्षण के नाम पर गया ले गई और फ़्लोर टेस्ट के लिए सत्ता पक्ष के कई विधायकों को पुलिस की निगरानी में रखा गया.
यही नहीं मौजूदा लोकसभा चुनावों में बिहार में चर्चा छेड़ने की कोशिश की गई है कि जेडीयू के परंपरागत वोटर माने जाने वाले कोइरी और कुर्मी मतदाता इस बार चिराग़ पासवान की पार्टी एलजेपी(आर) के उम्मीदवार को वोट नहीं कर रहे हैं.
माना जाता है कि ऐसी ख़बरों से जेडीयू और एलजेपी(आर) के बीच दरार आ सकती है और इसका वोटरों के एक बड़े वर्ग पर असर पड़ सकता है.
सोमवार 13 मई को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के क़रीबी मित्र रहे बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का निधन हो या वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नामांकन हो, नीतीश कुमार को इन दोनों मौक़ों पर मौजूद नहीं थे.
जबकि एक दिन पहले पटना में मोदी के रोड शो में नीतीश कुमार को देखा गया था. उस रोड शो में नीतीश कुमार बहुत उत्साहित नज़र नहीं आ रहे थे.
ख़बरों के मुताबिक़ तेजस्वी यादव ने नीतीश की ग़ैरमौजूदगी पर दावा किया कि “हमें चाचाजी का आशीर्वाद प्राप्त है और वो ख़ुद नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते नहीं देखना चाहते हैं”.
तेजस्वी के इस दावे ने बिहार में एक बड़ी सियासी बहस छेड़ दी कि नीतीश कुमार अब क्या करने जा रहे हैं.
माना जाता है कि तेजस्वी और आरजेडी की ऐसी रणनीति के पीछे संजय यादव का बड़ा हाथ होता है.
नलिन वर्मा कहते हैं, “संजय यादव ने तेजस्वी के लिहाज़ से चीज़ों को देखना शुरू किया. तेजस्वी को राजनीति की शुरुआत में आम लोगों से बात करने में भी परेशानी होती थी. संजय ने उनको मांजा है और काफ़ी कुछ सिखाया है.”
पुराने नेताओं से दूरी
हालाँकि ऐसा भी नहीं है कि संजय यादव की मौजूदगी में तेजस्वी यादव और आरजेडी के लिए सबकुछ अच्छा ही हुआ है. संजय यादव पर एक बड़ा आरोप यह लगता है कि उन्होंने तेजस्वी को अपने नियंत्रण में ले लिया है और आरजेडी के पुराने लोग दरकिनार कर दिए गए हैं.
आरजेडी में मनोज झा, अब्दुल बारी सिद्दीक़ी, शिवानंद तिवारी और जगदानंद सिंह जैसे कई नेता हैं जो लालू और आरजेडी के काफ़ी ख़ास और क़रीबी माने जाते हैं. लेकिन संजय यादव को तेजस्वी का सबसे क़रीबी और ख़ास माना जाता है.
तेजस्वी यादव ने लालू के सामाजिक न्याय और मुस्लिम यादव समीकरण को अपनी ताक़त बनाकर रखा है. हालाँकि अब वो ‘ए टू ज़ेड’ यानी हर जाति और समुदाय को साथ रखने की बात करते हैं.
आरजेडी की नई रणनीति में नव समाजवाद है और अब पार्टी हर तबक़े के कमज़ोर लोगों को जोड़ने की कोशिश कर रही है. उसने युवाओं की महत्वाकांक्षा को अपनी नीतियों में जगह देकर पार्टी के विस्तार की कोशिश की है.
लेकिन माना जाता है कि नए लोगों को जोड़ने की इस कोशिश में उसके पुराने लोग पीछे छूटते जा रहे हैं. आरजेडी के कुछ नेताओं ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया है कि अब हमें भी तेजस्वी से मिलने और बात करने में परेशानी होती है.
मणिकांत ठाकुर कहते हैं, “संजय यादव ने तेजस्वी को परिवार और पुराने सलाहकारों से दूर हटाया है. किससे कितनी बात करनी है, कहाँ किसकी तस्वीर और पोस्टर लगाने हैं, किसकी नहीं लगानी है, यह सब संजय यादव तय करते हैं. आरजेडी में सब कुछ उनके कंट्रोल में रहता है.”Bihar Politics : तेजस्वी ने क्या कह दिया ऐसा? बिहार में गरमाई सियासत, BJP नेता बोले- बस 4 जून का इंतजार करिए&#